मंगलवार

श्री बाँकेबिहारी जी का इतिहास History Of Bankey Bihari ji Vrindavan

Bankey Bihari Mandir Vrindavan बांके बिहारी मंदिर, वृन्दावन 

वृंदावन, यह एक ऐसी पावन भूमि है, जिस भूमि पर आने मात्र से ही सभी पापों का नाश हो जाता है। वृन्दावन में हर समय होती है राधे राधे 

श्री बांके बिहारी जी का मंदिर  भारत के प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। श्री बांके बिहारी  कृष्ण का ही एक रूप है जो इनमें प्रदर्शित किया गया है।

sri bankey bihari vrindavan


श्री बाँकेबिहारी जी का संक्षिप्त इतिहास


यह मन्दिर श्री वृन्दावन धाम के एक सुन्दर इलाके में स्थित है। इस मन्दिर का निर्माण स्वामी श्री हरिदास जी के वंशजो के सामूहिक प्रयास से संवत 1921 के लगभग कराया गया। मन्दिर निर्माण के शुरूआत में किसी दान-दाता का धन इसमें नहीं लगाया गया।

श्री हरिदास स्वामी के भजन–कीर्तन से प्रसन्न हो निधिवन से श्री बाँकेबिहारीजी प्रकट हुये थे।

श्री हरिदास जी, स्वामी आशुधीर देव जी के शिष्य थे। ये बचपन से ही संसार से ऊबे रहते थे। किशोरावस्था में इन्होंने आशुधीर जी से युगल मन्त्र दीक्षा ली तथा यमुना समीप निकुंज में एकान्त स्थान पर जाकर ध्यान-मग्न रहने लगे।

जब ये 25 वर्ष के हुए तब इन्होंने अपने गुरु जी से विरक्तावेष प्राप्त किया एवं संसार से दूर होकर निकुंज बिहारी जी के नित्य लीलाओं का चिन्तन करने में रह गये। निकुंज वन में ही स्वामी हरिदासजी को बिहारीजी की मूर्ति निकालने का स्वप्नादेश हुआ था। तब उनकी आज्ञानुसार श्रीविग्रह को धरा को गोद से बाहर निकाला गया।

यही सुन्दर मूर्ति जग में श्रीबाँकेबिहारी जी के नाम से विख्यात हुई। यह मूर्ति मार्गशीर्ष, शुक्ला के पंचमी तिथि को निकाला गया था। अतः प्राकट्य तिथि को विहार पंचमी के रूप में बड़े ही उल्लास के साथ मानते है।

श्री बाँकेबिहारी जी निधिवन में ही बहुत समय तक स्वामी हरिदास जी द्वारा सेवित होते रहे थे। फिर जब मन्दिर का निर्माण कार्य सम्पन्न हो गया, तब उनको वहाँ लाकर स्थापित कर दिया गया।

श्री बाँकेबिहारी जी मन्दिर में केवल शरद पूर्णिमा के दिन वंशीधारण करते हैं। केवल श्रावन तीज के दिन ही ठाकुर जी झूले पर बैठते हैं।

चरण दर्शन केवल अक्षय तृतीया के दिन ही होता है। इन चरण-कमलों का जो दर्शन करता है। उसका तो बेड़ा ही पार लग जाता है।

बाँकेबिहारी मंदिर में एक विलक्षण बात यह है कि यहाँ प्रतिदिन मंगला आरती नहीं होती। जन्माष्टमी के दिन ही केवल उनकी मंगला आरती होती हैं। जिसके दर्शन सौभाग्यशाली व्यक्ति को ही प्राप्त होते हैं।

श्री बाँके बिहारी जी रात को रास करने के लिए निधिवन जाते हैं। इसी कारण से प्रातः श्रीबिहारी जी की मंगला आरती नहीं होती हैं। इसका कारण यह है कि रात्रि में निधिवन में बिहारी जी 
रास करके आते है। इसलिए सुबह उनको आराम से सोने दिया जाता है।

एक दिन सुबह स्वामी जी देखा कि उनके बिस्तर पर रजाई ओढ़कर कोई सो रहा है।

यह देखकर स्वामी जी बोले, अरे मेरे बिस्तर पर कौन सो रहा है। वहाँ श्री बिहारी जी स्वयं सो रहे थे। शब्द सुनते ही बिहारी जी निकल भागे। किन्तु वे अपने चुड़ा एवं वंशी, को बिस्तर पर छोड़कर चले गये।

स्वामी जी काफी वृद्ध हो चुके थे  इस अवस्था में दृष्टि कमजोर होने के कारण उनको कुछ दिखाई नहीं पड़ा।


जब श्री बाँकेबिहारीजी मन्दिर के पुजारी ने जब मन्दिर के द्वार खोले तो उन्हें श्रीबाँकेबिहारी जी के पलने में चुड़ा एवं वंशी नजर नहीं आयी। लेकिन मन्दिर का दरवाजा बन्द था।

यह सब देखकर पुजारी जी निधिवन में श्री हरिदास जी के पास आये एवं उनको सारी बात बतायी।

स्वामी जी बोले कि सुबह कोई मेरे पंलग पर सोया हुआ था। वो जाते वक्त कुछ छोड़ गया हैं। तब पुजारी जी ने प्रत्यक्ष देखा कि पंलग पर श्री बाँकेबिहारी जी की चुड़ा और वंशी पड़े हुए हैं।

श्री बाँकेबिहारी जी के दर्शन सम्बन्ध में अनेकों किस्से प्रचलित हैं। जिनमें से एक तथा दो निम्नलिखित हैं–

एक बार एक भक्तिमती ने अपने पति को बहुत प्रार्थना के पश्चात वृन्दावन जाने के लिए राजी किया। दोनों वृन्दावन आकर रहने लगे और श्री बाँके बिहारी जी के दर्शन करने लगे।

कुछ दिन श्री बिहारी जी के दर्शन करने के पश्चात उसके पति ने जब अपने घर  वापस लौटने के लिए पत्नी से कहा , तो भक्तिमति को लगा कि श्री बिहारी जी के दर्शन लाभ से वंचित होना पड़ेगा, ऐसा सोचकर वो रोने लगी।

संसार बंधन के लिए अपने घर जाना पड़ेगा , इसलिए वो श्री बिहारी जी के निकट रोते–रोते प्रार्थना करने लगी 'हे प्रभु मैं घर जा रही हूँ, किन्तु तुम हमेशा मेरे पास ही रहना , ऐसी प्रार्थना करने के पश्चात वे दोनों रेलवे स्टेशन की ओर घोड़ा गाड़ी में बैठकर चल दिये।

उस समय श्री बाँकेविहारी जी एक बालक का रूप धारण कर घोड़ागाड़ी के पीछे भक्तिमति से प्रार्थना करने लगे कि वृन्दावन छोड़कर मत जाओ।

इधर पुजारी ने मंदिर में ठाकुर जी को न देखकर उन्होंने भक्तिमति के प्रेम को जान लिया एवं तत्काल वे घोड़ा गाड़ी के पीछे दौड़े। 
गाड़ी में बालक रूपी श्री बाँके बिहारी जी से प्रार्थना करने लगे। कुछ समय में ही वह बालक उनके मध्य से गायब हो गया। पुजारी जी मन्दिर लौटकर आये तो श्री बाँके बिहारी जी वापस आ चुके थे।

इधर भक्त तथा भक्तिमति ने श्री बाँकेबिहारी जी की स्वयं कृपा जानकर दोनों ने अपने घर जाने का विचार त्याग दिया और श्रीबाँकेबिहारी जी के चरणों में अपने जीवन समर्पित कर दिया।

ऐसे ही अनेकों कारण से श्री बाँके बिहारी जी के झलक दर्शन होते हैं।

श्री बिहारी जी  के सामने  दरवाजे पर लगा पर्दा एक दो मिनट के अंतराल पर क्यों बन्द एवं खोला जाता हैं।


एक बार एक भक्त टकटकी लगाकर बिहारी जी को देखता रहा  उसकी भक्ति के वशीभूत होकर श्री बाँकेबिहारी जी भक्त के साथ ही चले गये।

पुजारी जी ने जब मन्दिर के दरवाजे को खोला तो उन्हें श्री बाँके बिहारी जी  दिखाई नहीं  दिये।

पता चला कि वे अपने एक भक्त की गवाही देने अलीगढ़ चले गये हैं। तभी से ऐसा नियम बना दिया कि ठाकुर जी का पर्दा खुलता एवं बन्द होता रहता है। 

एक समय उनके दर्शन के लिए एक भक्त महानुभाव उपस्थित हुए। वे बहुत देर तक एक-टक से इन्हें निहारते रहे। श्री बाँकेबिहारी जी उन पर रीझ गये और उनके साथ ही उनके गाँव में चले गये।

बाद में बिहारी जी के गोस्वामियों को पता लगने पर उनका पीछा किया और बहुत अनुनय-विनय कर ठाकुरजी को लौटा कर श्री मन्दिर में पधराया।

इसलिए बिहारी जी के झाँकी दर्शन की व्यवस्था की गई। ताकि कोई उनसे नजर न लड़ा सके।

लोगों की आस्था इतनी है कि जिन्हें आँखों से कुछ नहीं दिखता वो भी प्रतिदिन दर्शन करने आते हैं। जिज्ञासा वश ऐसे व्यक्ति से पूछा बाबा आपको आँखों से दिखाई नहीं देता है, फिर भी बिहारी जी के दर्शन हेतु आप रोज आते  हैं। तो उन्होंने उत्तर दिया, "लाला मुझे नहीं दिखता है, पर बिहारी जी तो मुझे देख रहे हैं"

Mathura Vrindavan

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