Sadhvi Arya Pandit |
जैसे फूल में पराग आ जाता है तो भौरें मंडराने लगते है। ऐसा ही जब भगवान की कृपा होती है भक्ति का प्रचार अपने आप होता है। मतलब भक्ति में तो मुझे जुड़ना है और उसका प्रचार अपने आप हो रहा है। अगर हम प्रचार करने उतरेंगे तो माया इतनी बलवान है कि फिसल के वहां खड़ा कर देगी, जहां हमारे अंदर भक्ति ही नहीं रह जायेगी।
अपने को ठसाठस भक्ति में भर लो। भगवान कहते हैं कि जो मेरी भक्ति से युक्त हैं वो त्रिभुवन को पावन कर सकता है। ये कोई बुद्धिगत नहीं है कि हम किसी को बदल सकते हैं।
हमारी बहादुरी से हम अपने मन को चेला बनाकर भगवान का बना दे, तो हम बहादुर है। हम दूसरों को तो उपदेश दे सकते हैं पर अपने मन को चेला नहीं बना पाए। जब हम अपने मन को उपदेश देकर सही मार्ग पर नहीं चला पाए तो हम दूसरों का क्या कल्याण कर लेंगे।
अगर हमने खीर बनाकर खुद पाई नहीं और रोज खीर का प्रवचन कर रहे हैं तो वो खीर का प्रवचन किसी को नहीं लुभाएगा। पहले डटकर बनाओ और पेट से गले तक पाओ और पचाओ। जब पच जाएगा तब आप खीर का वर्णन करोगे तब आपके मुंह की मुस्कुराहट, पाने का स्वाद दूसरों को आकर्षित कर देगा।
ऐसे ही हम भगवतानंद की बातें तो बहुत करते है पर जब तक खुद भगवतानंद को महसूस नहीं किया तब तक किसी पर प्रभाव नहीं पड़ेगा इसलिए पहले खुद को समर्थ बनाओ।
अध्यात्म में जनकल्याण स्वयं होता है, किया नहीं जाता। जब आप खुद से न महसूस कर लें कि, हे हरि! मैं तो किसी योग्य नहीं, मैं तो आपका एक तुच्छ दास हूं, तब योग्यता आएगी जन कल्याण की। और जब हम जान कल्याण करने उतरेंगे तो देखेंगे कि जन है ही नहीं, क्योंकि उसको सब जगह ही श्री हरी दिखाई देंगे।
तो बात यहां यह समझनी है कि अपना चश्मा ठीक करना है और अपना हृदय भक्ति से भरना है फिर सब मंगल ही मंगल होगा।
कथा व्यास- "साध्वी आर्या पंडित" श्रीमद् भागवत कथा वक्ता 86501 21385 वृन्दावन, ज़िला - मथुरा
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