रविवार

गृहस्थी में माया क्या सताती है? मेरा शरीर, मेरी पत्नी, मेरे बच्चे और कुछ ऐसी व्यवस्था हो जाए

sadhvi arya pandit
Sadhvi Arya Pandit


सिर्फ गृहस्थ जीवन में नहीं, भगवत मार्ग पर भी माया बहुत परेशान करती है। आप क्या सोचते हो की यह केवल गृहस्थी को ही परेशान करती है पर ऐसा नहीं है, वो तो धज्जियां उड़ा देती है, अभी आपने देखा नही है न क्योंकि आप गृहस्थी में रहते हो।

यह चढ़ते हुए को घसीट के रौंदते हुए हजारों हाथ नीचे दबा दे। अगर कोई बच सकता है तो केवल भगवान की शरणागति से। यहां ज्ञान, विज्ञान, बुद्धि काम नहीं करती।

परंतु जिसकी बुद्धि भगवान के चरणों में अर्पित है वही जीत सकता है। ऐसा नहीं होता है कि केवल गृहस्थ में माया सताती है विरक्ति में नहीं बल्कि यह गृहस्थी में कम सताती है विरक्ति में ज्यादा सताती है।

ऐसा इसलिए क्योंकि गृहस्थी तो चार दिवारी के अंदर है न और विरक्ति मतलब वो उस लाइन से बाहर निकल गया और उसे वापिस से लाइन में लाना है। जैसे कोई योद्धा शत्रु पक्ष की ओर चला गया तो उसे पुनः लाइन में लाना होगा।

लेकिन माया उसके लिए पूरा जोर लगा देगी कि हमारी अधीनता से तुम बाहर कैसे जा रहे हो और उसके जोर को जो सह गया, उसी को महात्मा कहते है।

गृहस्थी में माया क्या सताती है? मेरा शरीर, मेरी पत्नी, मेरे बच्चे और कुछ ऐसी व्यवस्था हो जाए कि खाए, पिए आनंदपूर्वक रहने और घंटा दो घंटा आरती पूजा भी भगवान की करते रहें। सात्विक पुरुषों के अंदर, सबके अंदर यही भावना है कि हे भगवान! भले हमे तुम कुबेर का खजाना मत दो पर इतना हो कि समाज में प्रतिष्ठा बनी रहे, परिवार स्वस्थ रहे। पर ऐसा होगा नहीं, न किसी के साथ होता।

क्योंकि दो कर्मों से हमारा शरीर रचा गया है– पाप और पुण्य। जब पाप का फल आएगा तो भयंकर आएगा। रोग, दुःख, विपत्ति, नाना प्रकार के संकट और जब पुण्य का फल आएगा तो उत्साह, आनंद, उत्सव आदि सब चलेगा। ये दोनों ही चलेंगे जैसे दिन और रात। इसलिए कोई भी ऐसा नहीं है जिसके जीवन में दुःख न आया हो। इस श्रेणी में भगवान ही क्यों न प्रकट हुए और दुःख न आया हो, ऐसा तो नहीं।

हमें तो उतना दुःख आया ही नहीं है जितना भगवान के अवतार लेने पर उनको दुख आया है– चाहे वो कृष्ण अवतार हो या राम अवतार हो। भगवान ने अवतार लेकर बताया है कि दुःख और सुख दोनों चलते रहेंगे।

एक सुख ऐसा भी है जहां इन दोनों का प्रवेश नहीं है उसे कहते हैं भगवतानंद, जो दुख सुख से परे है। जो सुख दुख में समान, लाभ हानि में समान, अजय पराजय में समान, वो परम सुख भगवान का है।

तो अगर गृहस्थी में रहकर भी नाम जप किया जाए, भगवान की आराधना की जाए और यह भाव रखा जाए कि हम भूखे हैं तो आपकी मर्जी, छके है तो आपकी मर्जी, आप जैसे दिला रहे हो, हम राजी है, तो माया पार हो जाओगे।

उनसे मांग ज्यादा रखने से माया पार नहीं होने वाली। वो आपके भजन साधनों से मांग तो पूर्ण कर देंगे लेकिन उसका क्या फायदा। इसलिए भगवान से यह मांगे कि मेरा यह जीवन और इस जीवन के बाद जिसमें मंगल हो वही करना। भले मैं कुछ भी मांगना रहूं, मत देना।

जब हम भगवान के शरण में होंगे, हमें कोई माया परेशान नहीं कर सकती।

कथा व्यास- "साध्वी आर्या पंडित" श्रीमद् भागवत कथा वक्ता 86501 21385 वृन्दावन, ज़िला - मथुरा

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