रविवार

मंत्र जप करें या नाम जप, जानिए "साध्वी आर्या पंडित"

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Sadhvi Arya Pandit


फल पर दृष्टि रखना छोड़ दो। हमको सबसे बड़ा फल यह देखना है कि आराध्य देव से मन जुड़ा हुआ है या नहीं।

हमारी जीभ्या, हमारी सर्वेंद्रियां, हमारी चेष्ठा आराध्य देव से जुड़ी हुई है या नही। जिसका लक्ष्य अखंड स्मृति होता है वो इन सब बातों को नहीं देखता। वो देखता है कि हम पद गा रहे हैं तो उनका गा रहे हैं, सेवा कर रहे हैं तो उनकी कर रहे हैं, नाम जप रहे हैं तो उनका कर रहे हैं, नृत्य कर रहे हैं तो उनके लिए कर रहे हैं, व्यापार कर रहे हैं तो उनके लिए कर रहे है। उनसे जुड़ना परमंगल है।

संसार से जुड़ना परम् हानिकारक है। मेन चीज समझनी है कि लक्ष्य पर रहिए तो कभी दुख नहीं होगा, नहीं तो वाचिक जपने से 100 गुना फल उपान्स में है। उपान्स जपने से हज़ार गुना फल मानसिक में है। मानसिक कुछ होता नहीं, तो हो गया फल खत्म।

हम अगर फलों की तरफ दृष्टि रखेंगे तो हमारा भजन सही नहीं हो पाएगा। हमें दृष्टि रखना है आराध्य देव से चित्त जोड़ना है। एक एक वृत्ति प्रभु में जुड़ रही है यही हमारा वर्तमान का फल है।

हम प्रभु का स्मरण कर रहे है, प्रभु का नाम जपते हुए, लीला गहन करते हुए, सेवा करते हुए, हमें यही चाहिए और स्मृति का जो फल होता है वो बहुबंधन से मुक्त होकर भगवान की सेवा में जाना होता है।

उनका नाम, उनका रूप, उनका गुण, उनका लीला ही हमारे चिंतन में चल रही है, बस हमें और कुछ नहीं चाहिए। भगवत स्मृति ही साधना का सार है। हर समय स्मरण में डूबे रहे, इससे बड़ी सिद्धि क्या होगी।

अगर हम सोचते रहेंगे कि पवित्र अवस्था नहीं है, मंत्र जप सकते नहीं, नाम का फल वो है नहीं, तो नाम में अश्रद्धा हो गई, मंत्र जपने का समय नहीं तो सब गड़बड़ हो जायेगा।

हमें प्रभु से जुड़े रहना है। हमारी चित्त वृत्ति प्रभु में जुड़ी रहे। वो नाम के द्वारा, गुण के द्वारा, मंत्र के द्वारा हम प्रभु से जुड़े रहें। ये बात ध्यान रखोगे तो बहुत आनंद रहेगा।

फल में रस होता है और हमारी दृष्टि रस में रहे। रस है प्रिया प्रीतम प्रभु और अगर फल पर दृष्टि रहेगी तो बड़ा कन्फ्यूजन होगा कि इसका फल ये होगा, उसका फल वो होगा, अब ये करना चाहिए पर हो नहीं रहा तो बड़ा परेशान है।

अगर नहीं भी वृद्धि हो रही है तो हम प्रभु के हैं, प्रभु से जुड़े हुए हैं, बस इतने से सर्वमंगल हो जाएगा।

"साध्वी आर्या पंडित" श्रीमद् भागवत कथा वक्ता 86501 21385 वृन्दावन, ज़िला - मथुरा

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