Sadhvi Arya Pandit |
किसने कहा कि घर छोड़ना चाहिए, माता– पिता को छोड़ दो। शास्त्र के अनुसार भगवान आदेश करते हैं कि क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए।
दो मार्ग है– एक है प्रवृत्ति मार्ग और दूसरा है निवृत्ति मार्ग। निवृत्ति मार्ग का अर्थ है सन्यास मार्ग। इस मार्ग पर जब हम चलते हैं तो माता पिता को प्रणाम करके, उनसे अनुमति लेकर आजीवन उनसे न मिलने का वैराग्य लेते हैं।
जिस दिन से जन्म भूमि से निकले, सब खत्म। माता पिता, भाई बहन, बंधु परिवार अब हमारे भगवान के अलावा कोई नहीं। जिस रसोई में बचपन में खेलते हुए भोजन खाया, उससे निकले तो आज तक उस रसोई में कौरा नही तोड़ा।
जिस मां ने पालन पोषण किया, उसी मां के आशीर्वाद से निकले। वो पधारी, क्या हुई जीवन में नहीं देखा। यह है हमारा निवृति मार्ग।
लेकिन गृहस्थ मार्ग पर चल रहे हैं तो माता पिता को भगवान मान कर उनकी सेवा करते हुए खूब नाम जप करो, वहीं भगवत प्राप्ति होगी। ऐसा नहीं है कि प्रवृत्ति मार्ग पर चलोगे तो ही भगवत प्राप्ति हो।
स्वभाव के अनुसार भगवान सब जीव को मार्ग देते हैं। हमारे कुछ पूर्वज का भजन ऐसा रहा होगा कि भगवान ने हमें इस राह पर चलने के लिए रास्ता दिखाया।
पर निवृति मार्ग पर चल कर जो फल मिलता है वो फल तुम्हे प्रवृत्ति मार्ग पर चल कर भी मिल जायेगा। बस अपने माता पिता को भगवान मानो, खूब सेवा करो, कमाओ खाओ, उनको दुलार करो, समाज सेवा में उतर कर आओ और नाम जपने का निरंतर अभ्यास करो, ऐसे भी भगवत प्राप्त हो जाओगे।
जब हम वैराग्य की बात करते हैं तो उनके लिए कहते हैं जिन्होंने वैराग्य पाठ का चयन कर लिया है, जो वैराग्य में चल रहे हैं, जो आगे बढ़ गए हैं। कदम आगे बढ़ गए तो पीछे लौटना नहीं है, चाहे जो हो जाए।
लेकिन आप जिस वेश में हो, उसी के अनुसार चलना चाहिए। इसलिए आपको तो किसी ने आज्ञा नहीं दिया है कि माता पिता को छोड़ दो। अब अगर कोई मनमानी आचरण करे तो किसी का कहां बस है किसी पर।
इसलिए लोगों की कही सुनी पर मत जाइए। अपने मन की सुनो और अपने मार्ग पर चलते जाओ।
"साध्वी आर्या पंडित"
श्रीमद् भागवत कथा वक्ता,
वृन्दावन, ज़िला - मथुरा - 86501 21385
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